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| Azim Premji Success Story in Hindi |
परिचय (पहचान और खास बातें)
अज़ीम हाशिम प्रेमजी का नाम भारत के व्यापार जगत में सिर्फ एक अमीर आदमी के तौर पर नहीं लिया जाता, बल्कि उन्हें ईमानदारी, दूर की सोच और बड़े दिल से दान करने की निशानी माना जाता है। वह विप्रो लिमिटेड (Wipro Limited) के मालिक और संस्थापक अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपनी कंपनी को, जो कभी सिर्फ खाना पकाने का तेल बनाती थी, आज दुनिया की बड़ी टेक्नोलॉजी (IT) कंपनी बना दिया है। प्रेमजी की सबसे बड़ी खूबी उनकी पक्की ईमानदारी है। उन्होंने विप्रो में काम करने के ऐसे अच्छे और साफ-सुथरे नियम बनाए, जो पूरे भारतीय उद्योग के लिए एक मिसाल बन गए। उनकी दूसरी खास बात उनकी साधारण जीवनशैली है। दुनिया के सबसे अमीर लोगों में होने के बावजूद, प्रेमजी हमेशा बहुत सादगी से रहे। वह हवाई जहाज में भी इकोनॉमी क्लास में सफर करते थे और कंपनी के छोटे-मोटे खर्चों पर भी ध्यान देते थे। उनकी इस सोच ने ही उन्हें 'साइलेंट बिलिनेयर' की पहचान दी है। उनकी दूर की सोच ने उन्हें तेल के धंधे को छोड़कर सॉफ्टवेयर सेवाओं के भविष्य को पहचानने और उसमें पैसा लगाने के लिए प्रेरित किया, जो भारत की आईटी क्रांति की नींव बना।
जन्म, बचपन और परिवार (शुरुआती जीवन और माता-पिता)
अज़ीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को बंबई (अब मुंबई) में एक पैसे वाले और इज़्ज़तदार मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम मोहम्मद हुसैन प्रेमजी था, जो खुद एक जाने-माने कारोबारी थे। उन्होंने ही वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड (WIPRO) नाम की कंपनी शुरू की थी, जो उस समय वनस्पति तेल और साबुन बनाती थी। उनके दादाजी, हाशिम प्रेमजी, चावल के मशहूर व्यापारी थे, जिन्हें 'राइस किंग ऑफ बर्मा' कहा जाता था। इससे पता चलता है कि व्यापार उनके परिवार में पीढ़ियों से चला आ रहा था। प्रेमजी का बचपन मुंबई में आराम से बीता, लेकिन उनके परिवार में हमेशा अच्छे संस्कारों और समाज की जिम्मेदारी पर ज़ोर दिया जाता था। उनकी माताजी, गुलबानू प्रेमजी, एक डॉक्टर थीं और उन्होंने अज़ीम के जीवन में अनुशासन और पढ़ाई-लिखाई के महत्व को समझाया। भले ही परिवार अमीर था, लेकिन प्रेमजी ने शुरू से ही मेहनत करने और नई चीजें सीखने की लगन दिखाई।
पढ़ाई और अचानक आई बड़ी जिम्मेदारी (शिक्षा और जीवन का मोड़)
अज़ीम प्रेमजी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के मशहूर सेंट मैरीज़ स्कूल, माज़गाँव से पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए, वह अमेरिका चले गए और वहाँ की जानी-मानी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने लगे। उनका सपना था कि पढ़ाई पूरी करके भारत लौटें और अपने पारिवारिक व्यापार को नए तरीके से आगे बढ़ाएँ। लेकिन, 1966 में, जब वह केवल 21 साल के थे और अभी अपनी पढ़ाई पूरी ही कर रहे थे, तभी उनके पिताजी, मोहम्मद हुसैन प्रेमजी, का अचानक देहांत हो गया। यह घटना उनके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ थी। उन्हें तुरंत अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत आना पड़ा ताकि वह पारिवारिक कंपनी WIPRO को संभाल सकें। उस समय, कंपनी के बोर्ड के कुछ लोगों ने इतने कम उम्र के लड़के को कंपनी की बागडोर देने पर शक किया। कुछ शेयरधारकों ने तो उन्हें सरेआम कह दिया कि वह कंपनी नहीं चला पाएंगे और उन्हें अपने शेयर बेचकर चले जाना चाहिए। इस विरोध और चुनौती ने प्रेमजी के आत्मविश्वास और पक्के इरादे को और भी मज़बूत कर दिया।
कंपनी का संघर्ष और आईटी की नई राह (बिजनेस में बदलाव और आईटी क्रांति)
प्रेमजी ने 1966 में औपचारिक रूप से वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड की जिम्मेदारी संभाल ली। शुरुआती सालों में, उन्होंने कंपनी को और बेहतर और कुशल बनाने पर ध्यान दिया। लेकिन उनकी असली दूर की सोच तब सामने आई जब उन्होंने कंपनी को पूरी तरह से बदलने का फैसला किया। 1970 के दशक के आखिर में, जब भारत सरकार ने विदेशी कंपनी आईबीएम (IBM) को देश छोड़ने के लिए कहा, तो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़ा मौका बन गया। प्रेमजी ने इस मौके को पहचाना और 1980 में, उन्होंने कंपनी का नाम बदलकर विप्रो (Wipro) रखा और कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कदम रखा। यह एक हिम्मत भरा फैसला था। उन्होंने तेल और साबुन के कारोबार से जो पैसा कमाया, उसे टेक्नोलॉजी की रिसर्च और डेवलपमेंट में लगाना शुरू किया। 1990 के दशक में, जब इंटरनेट और सॉफ्टवेयर आउटसोर्सिंग का चलन बढ़ा, प्रेमजी ने फिर समझदारी दिखाते हुए विप्रो का ध्यान कंप्यूटर हार्डवेयर से हटाकर पूरी दुनिया के लिए सॉफ्टवेयर सेवाएं देने पर लगा दिया। इस फैसले ने विप्रो को एक अंतर्राष्ट्रीय आईटी कंपनी बना दिया, और प्रेमजी भारत के आईटी किंग बन गए।
नेतृत्व का तरीका और पक्के सिद्धांत (लीडरशिप और नैतिकता)
अज़ीम प्रेमजी का नेतृत्व करने का तरीका और उनका व्यवहार उन्हें बाकी उद्योगपतियों से अलग करता है। उनका मानना है कि कंपनी में कर्मचारी ही उनकी सबसे ज़रूरी संपत्ति हैं। वह कर्मचारियों को काम सौंपने और उन्हें फैसला लेने की आज़ादी देने में यकीन रखते हैं, जिससे वे नया सोचते हैं और जिम्मेदारी लेते हैं। उनकी सफलता का सबसे बड़ा आधार उनकी पक्की नैतिकता है। प्रेमजी हमेशा मानते हैं कि कामयाबी तभी मायने रखती है जब उसे ईमानदारी और सही तरीके से पाया जाए। उन्होंने अपनी कंपनी में भ्रष्टाचार और गलत कामों के लिए कोई जगह नहीं रखने की सख्त नीति अपनाई। इसके अलावा, उनकी बेहद सादगी भी मशहूर है। अरबपति होने के बावजूद, वह हमेशा फिजूलखर्ची से बचते रहे और कंपनी के छोटे-छोटे खर्चों पर भी ध्यान देते थे।
बड़े दिल से दान और समाज पर असर (परोपकार और सामाजिक काम)
प्रेमजी की कहानी का सबसे प्रेरक हिस्सा उनकी बहुत बड़ी दानशीलता है। उन्होंने अपनी अपार दौलत को सिर्फ अपने लिए नहीं रखा, बल्कि समाज को वापस लौटाने की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। 2001 में, उन्होंने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की शुरुआत की, जिसका मुख्य लक्ष्य भारत की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाना था। उन्होंने समय-समय पर विप्रो में अपनी हिस्सेदारी का एक बड़ा हिस्सा फाउंडेशन को दान किया है। 2019 में, उन्होंने अपनी लगभग 34% हिस्सेदारी (जिसकी कीमत उस समय करीब $21 बिलियन थी) फाउंडेशन को दान कर दी, जिससे वह दुनिया के सबसे बड़े व्यक्तिगत दानदाताओं में गिने जाने लगे। यह फाउंडेशन खासकर गाँव और पिछड़े इलाकों में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए काम करता है। उन्होंने अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी भी बनाई है, जहाँ सामाजिक और विकास के क्षेत्र में काम करने के लिए योग्य लोग तैयार किए जाते हैं।


